मीडिया नीतिशास्त्र और मानवाधिकार: अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और सामाजिक उत्तरदायित्व

 सारांश :-

मीडिया किसी भी लोकतांत्रिक समाज की रीढ़ मानी जाती है, क्योंकि यह जनमत निर्माण, सूचना के प्रसार, और सशक्त समाज के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। मीडिया के कार्यों में निष्पक्षता, गोपनीयता, जवाबदेही और सामाजिक उत्तरदायित्व जैसी महत्वपूर्ण जिम्मेदारियाँ होती हैं। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता एक मौलिक मानवाधिकार है, जिसका संरक्षण किसी भी लोकतांत्रिक समाज के लिए आवश्यक है। इसके तहत हर व्यक्ति को अपने विचारों और राय को स्वतंत्र रूप से व्यक्त करने का अधिकार मिलता है, जिससे सामाजिक और राजनीतिक दृष्टिकोण को बढ़ावा मिलता है। इस शोध पत्र का उद्देश्य मीडिया नैतिकता और मानवाधिकारों के अंतर्संबंध का विश्लेषण करना है, खासकर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और सामाजिक उत्तरदायित्व के संदर्भ में। मीडिया, जो लोकतंत्र का चौथा स्तंभ माना जाता है, समाज में विचारों और सूचनाओं के आदान-प्रदान के एक महत्वपूर्ण साधन के रूप में कार्य करता है। इस प्रकार, मीडिया की जिम्मेदारी यह सुनिश्चित करना है कि इसके कार्य समाज के नैतिक और सांस्कृतिक मूल्यों को बनाए रखें और किसी भी प्रकार के दुरुपयोग से बचें।

की–वर्ड: मीडिया नीतिशास्त्र, मानवाधिकार, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, सामाजिक उत्तरदायित्व।

परिचय :-

मीडिया न केवल सूचनाओं का आदान-प्रदान करती है, बल्कि यह एक ऐसा मंच भी प्रदान करती है जहां लोग अपनी आवाज़ उठा सकते हैं और अपने अधिकारों के लिए संघर्ष कर सकते हैं। लोकतंत्र में मीडिया को एक स्वतंत्र और निष्पक्ष संस्था माना जाता है, जो समाज के विभिन्न पहलुओं को उजागर करती है और जनहित में कार्य करती है। यह विश्वास लोकतांत्रिक प्रक्रिया को मजबूत करता है और समाज के हर वर्ग को अपनी राय व्यक्त करने का अधिकार देता है।

किसी भी लोकतांत्रिक राष्ट्र के निर्माण में मीडिया का असीमित योगदान होता है। लोकतंत्र केवल एक शासन प्रणाली नहीं है; यह जनता की आकांक्षाओं, अधिकारों और कर्तव्यों का प्रतीक है। लोकतंत्र के मूल में अधिकारों का विचार निहित है—अधिकार जो व्यक्ति को अपनी गरिमा और स्वतंत्रता के साथ जीने का अवसर देते हैं। इन्हीं अधिकारों में से एक है अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, जो न केवल हर व्यक्ति के विचारों को साझा करने का आधार है, बल्कि लोकतंत्र को सशक्त बनाने वाली नींव भी है।

मानवाधिकार :-

मानवाधिकार, हर व्यक्ति का जन्मसिद्ध अधिकार है, जो उसे गरिमा और स्वतंत्रता के साथ जीने का अवसर प्रदान करता है। यह व्यक्ति को व्यक्ति होने के नाते दिया जाने वाला अधिकार है। इन अधिकारों में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (Freedom of Expression) का स्थान अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह न केवल व्यक्ति को अपने विचार, राय और भावनाएं व्यक्त करने का अवसर देता है, बल्कि लोकतंत्र और समाज में संवाद और बहस को भी प्रोत्साहित करता है।

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में मीडिया का योगदान :-

मानवाधिकारों में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता एक मौलिक अधिकार है। यह अधिकार प्रत्येक व्यक्ति को अपने विचारों को स्वतंत्र रूप से व्यक्त करने का अवसर देता है। यह स्वतंत्रता असीमित नहीं है। मीडिया को इस अधिकार का उपयोग सामाजिक उत्तरदायित्व के साथ करना चाहिए, ताकि यह समाज में सकारात्मक प्रभाव डाल सके।

मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ इसलिए कहते है, क्योंकि यह जनता को सशक्त करने और अपने अधिकारों की मांग रखने का माध्यम बनता है। इसी के साथ यह शासन के विभिन्न अंगों पर निगरानी रखने का कार्य भी करता है। मीडिया की भूमिका केवल सूचनाएं देने तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक ऐसा मंच है, जो शोषित और दबे-कुचले वर्गों की आवाज बनता है। मीडिया का महत्व इसलिए और बढ़ जाता है, क्योंकि यह अधिकारों और जिम्मेदारियों के बीच संतुलन बनाए रखने में मदद करता है।

मीडिया नीतिशास्त्र और इसका दार्शनिक परिपेक्ष्य :-

नैतिकता का विचार दर्शनशास्त्र की उन शाखाओं में से एक है, जो सही और गलत के बीच के भेद को स्पष्ट करने का प्रयास करता है। मीडिया को अपने कर्तव्यों का पालन करने के लिए प्रेरित किया जा सकता है। एक लोकतांत्रिक राष्ट्र में जहां अधिकारों की बात होती है, वहां जिम्मेदारियों का ध्यान रखना भी उतना ही आवश्यक है। अधिकार असीमित नही हो सकते। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता भी असीमित नहीं हो सकती। इसे सामाजिक और नैतिक दायित्वों के साथ जोड़कर देखा जाना चाहिए। यही वह स्थान है, जहां मीडिया की नीतिशास्त्र (Media Ethics) प्रासंगिक हो जाती है। मीडिया को यह सुनिश्चित करना होता है कि वह अपने कार्य में न केवल सत्यता और निष्पक्षता का पालन करे, बल्कि उसकी रिपोर्टिंग से समाज में कोई नकारात्मक प्रभाव भी न पड़े।

मीडिया नीतिशास्त्र को यदि दर्शन शास्त्र के पारंपरिक सिद्धांतों से जोड़ कर देखा जाए तो महात्मा गांधी का सत्य और अहिंसा का सिद्धांत मीडिया नैतिकता को समझने का एक आदर्श तरीका है। गांधीजी ने सत्य को सबसे बड़ा धर्म माना। मीडिया को सत्य के साथ खड़ा होना चाहिए और ऐसी रिपोर्टिंग करनी चाहिए, जो समाज में हिंसा या तनाव को बढ़ावा न दे।

इम्मानुएल कांट का कर्तव्यनिष्ठ नैतिकता का सिद्धांत (Deontological Ethics) :- इम्मानुएल कांट के कर्तव्यनिष्ठ नैतिकता सिद्धांत के अनुसार, मीडिया का कर्तव्य है कि वह सत्य और निष्पक्षता को बनाए रखे। कांट के अनुसार, नैतिकता का आधार कर्तव्य है, और कर्तव्य बिना किसी परिणाम की परवाह किए, केवल सत्य का पालन करना है। इसी प्रकार, मीडिया का भी कर्तव्य है कि वह सच्ची और निष्पक्ष जानकारी प्रदान करे, भले ही वह जानकारी किसी के लिए असुविधाजनक हो। इम्मानुएल कांट का कर्तव्यनिष्ठ सिद्धांत हमें सिखाता है कि मीडिया को सत्यता और निष्पक्षता का पालन करना चाहिए, चाहे इसके परिणाम कुछ भी हों।

जेर्गन हैबरमास का संवाद का सिद्धांत (Theory of Communicative Action) यह स्पष्ट करता है कि समाज में संवाद के माध्यम से ही समस्याओं का समाधान संभव है। मीडिया को ऐसा मंच बनना चाहिए, जो विभिन्न विचारधाराओं के बीच संवाद स्थापित करे और समाज को एकजुट करने में भूमिका निभाए।

मार्क्सवादी दृष्टिकोण के अनुसार, मीडिया को समाज के दबे-कुचले वर्गों की आवाज बनना चाहिए। पूंजीवाद के प्रभाव में मीडिया अक्सर शक्तिशाली वर्गों के हितों की रक्षा करता है। इसे बदलने के लिए मीडिया को निष्पक्ष रहकर समाज के कमजोर वर्गों के अधिकारों की रक्षा करनी चाहिए। मार्क्सवादी दृष्टिकोण के अनुसार, मीडिया को समाज के दबे-कुचले वर्गों की आवाज बनना चाहिए। इसे आर्थिक और राजनीतिक दबावों से मुक्त होकर निष्पक्ष रिपोर्टिंग करनी चाहिए।

जॉन स्टुअर्ट मिल का उपयोगितावाद यह कहता है कि मीडिया को ऐसे कार्य करने चाहिए, जो अधिकतम लोगों के लिए भलाई करें। उदाहरण के लिए, यदि मीडिया समाज के कमजोर वर्गों की आवाज बनता है, तो यह अधिकतम भलाई का सिद्धांत पूरा करता है।

अरस्तु का स्वर्ण मध्य मार्ग (Golden Mean) मीडिया नैतिकता को समझने का एक और दृष्टिकोण है। मीडिया को न तो अत्यधिक स्वतंत्रता का दुरुपयोग करना चाहिए और न ही बाहरी राजनीतिक दबावों के सामने झुकना चाहिए।

मीडिया पर कानूनी नियंत्रण :-

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 19(1)(a) प्रत्येक नागरिक को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार देता है। यह अधिकार केवल व्यक्तिगत अभिव्यक्ति तक सीमित नहीं है, बल्कि मीडिया को भी स्वतंत्र रूप से कार्य करने का अवसर प्रदान करता है। लेकिन यह स्वतंत्रता असीमित नहीं है। अनुच्छेद 19(2) के तहत यह कुछ सीमाओं के अधीन है, जैसे कि सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता और राष्ट्र की अखंडता। इस संतुलन को बनाए रखना मीडिया की नैतिकता का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।

मीडिया नैतिकता पर विचार करते समय हमें यह भी देखना होगा कि यह केवल कानूनी प्रतिबंधों तक सीमित नहीं है। इसमें नैतिक जिम्मेदारी भी शामिल है। लेकिन वास्तविकता में, मीडिया अक्सर वाणिज्यिक दबावों के आगे झुक जाता है। सनसनीखेज खबरें, भ्रामक सूचनाएं और निजी हित मीडिया की साख को कमजोर कर रहे हैं।

हम इसे कुछ उदाहरणों से भी समझ सकते हैं। 1975 के आपातकाल के दौरान भारत में प्रेस की स्वतंत्रता को दबा दिया गया था। समाचार पत्रों पर सेंसरशिप लागू की गई और सरकार के खिलाफ किसी भी प्रकार की खबर को प्रकाशित करने की अनुमति नहीं थी। यह घटना इस बात का प्रमाण है कि जब मीडिया स्वतंत्र नहीं होता, तो लोकतंत्र खतरे में पड़ सकता है। इसके विपरीत, निर्भया गैंगरेप मामले में मीडिया ने अपने सामाजिक उत्तरदायित्व को पूरी ईमानदारी से निभाया। इस मामले की व्यापक कवरेज ने समाज को झकझोर दिया और सरकार को कठोर कानून बनाने पर मजबूर कर दिया।

मीडिया नीतिशास्त्र एवं सामाजिक उत्तरदायित्व :-

मीडिया समाज का दर्पण है, जो न केवल सूचनाओं का प्रसार करता है, बल्कि समाज के मूलभूत मूल्यों, नैतिकता, और मानवाधिकारों की रक्षा में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। मीडिया का कार्य केवल तथ्यों को प्रस्तुत करना नहीं है; यह समाज को सही दिशा में प्रेरित करने, जागरूकता बढ़ाने और सत्ता के दुरुपयोग पर निगरानी रखने का भी दायित्व निभाता है।

मीडिया की स्वतंत्रता और सामाजिक उत्तरदायित्व के बीच संतुलन बनाए रखने में कई चुनौतियां भी हैं। डिजिटल मीडिया के उदय ने सूचनाओं के प्रसार को तो आसान बना दिया है, लेकिन इसके साथ ही फेक न्यूज़ और भ्रामक सूचनाओं की समस्या भी बढ़ गई है। कोविड-19 महामारी के दौरान, सोशल मीडिया पर कई झूठी खबरें फैलाई गईं, जिनसे लोगों में भय और भ्रम की स्थिति उत्पन्न हुई। मीडिया को यह समझना होगा कि उसकी शक्ति जितनी बड़ी है, उसकी जिम्मेदारी भी उतनी ही अधिक है।

निष्कर्ष :-

मीडिया नैतिकता और मानवाधिकार एक-दूसरे के पूरक हैं। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता एक मौलिक अधिकार है, लेकिन इसका उपयोग सामाजिक उत्तरदायित्व के साथ किया जाना चाहिए। मीडिया को चाहिए कि वह सत्य, निष्पक्षता और मानवता के सिद्धांतों का पालन करते हुए समाज में सकारात्मक परिवर्तन लाए। यह केवल कानून द्वारा संभव नहीं है; इसके लिए नैतिक जागरूकता और दार्शनिक दृष्टिकोण की आवश्यकता है।

मीडिया नैतिकता का महत्व केवल सूचनाओं के प्रसार तक सीमित नहीं है। यह समाज में सकारात्मक बदलाव लाने, लोकतांत्रिक मूल्यों को सशक्त बनाने और मानवाधिकारों की रक्षा करने का एक प्रभावशाली माध्यम है। हालांकि, मौजूदा समय में मीडिया को कई नैतिक चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। इनसे निपटने के लिए नैतिकता, दर्शनशास्त्र और जिम्मेदारी का सहारा लेना अनिवार्य है। जब मीडिया अपनी नैतिकता को बनाए रखते हुए कार्य करेगा, तभी वह समाज में अपने वास्तविक उद्देश्य को पूरा कर सकेगा।

मीडिया नैतिकता का महत्व केवल लोकतंत्र को सशक्त बनाने तक सीमित नहीं है। यह समाज को जागरूक करने, मानवाधिकारों की रक्षा करने और शांति बनाए रखने का एक प्रभावशाली माध्यम है। हालांकि, मौजूदा समय में मीडिया को फेक न्यूज, वाणिज्यिक दबाव, सनसनीखेज रिपोर्टिंग, और डिजिटल युग की चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।

इन चुनौतियों का समाधान केवल कानून के जरिए संभव नहीं है। इसके लिए मीडिया को अपनी नैतिक जिम्मेदारी को समझना होगा और सच्चाई, निष्पक्षता, और सामाजिक जिम्मेदारी के सिद्धांतों का पालन करना होगा। जब मीडिया अपने नैतिक मूल्यों को बनाए रखेगा, तभी वह समाज को सशक्त बनाने और लोकतंत्र को मजबूत करने में अपनी भूमिका को सही मायनों में निभा सकेगा।

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