डिजिटल युग में पारंपरिक भारतीय ज्ञान एवं दर्शन का संरक्षण, महत्व एवं योगदान

 


सारांश:-

भारत की विकास यात्रा में न केवल इसकी सामाजिक एवं आर्थिक प्रगति शामिल है बल्कि इसमें नैतिक मूल्य एवं सिद्धांतों का भी महत्वपूर्ण योगदान है। मानव जीवन के लिए महत्वपूर्ण इन सिद्धांतों की जड़े दर्शन में गहराई शामिल है। भारतीय दर्शन के स्वरूप एवं विकास में विशेष योगदान दिया जा रहा है। वेद, उपनिषद, बौद्ध, जैन और अन्य मानव जीवन को दिशा देने वाले विभिन्न सिद्धांत बताए जा रहे हैं। यह पत्र पारंपरिक भारतीय दर्शन के महात्म्य, प्रभाव योगदान एवं को प्रकाशित करता है, तथा यह भारतीय दर्शन एवं दर्शन के संरक्षण के अनुसंधान के लिए डिजिटल माध्यमों की भूमिका को भी पर्यटन बनाने का प्रयास करता है। साथ ही, यह प्रशासन पारंपरिक भारतीय ज्ञान एवं दर्शन के संरक्षण एवं कमियों को दूर करने वाली डिजिटल को भी प्रकाशित करने का प्रयास करता है। डिजिटल युग में केवल भारतीय दर्शन और ज्ञान संरक्षण की तलाश की जा रही है, बल्कि यह वैश्विक समाज भी स्थापित और सतत विकास की ओर प्रेरित कर रहा है।

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परिचय :- 

भारतीय पारंपरिक ज्ञान और दर्शन, जिसे प्राचीन काल से लेकर मानवीय हितों और नैतिक विकास का आधार माना जाता है, आधुनिक युग की भी विरासत है। वेद, उपनिषद, और दर्शनशास्त्र न केवल भारत के सांस्कृतिक चमत्कार हैं, बल्कि विश्व के लिए एक अमूल्य ज्ञान स्रोत भी हैं।

आज के युग को डिजिटल युग के रूप में जाना जाता है, जहां प्रौद्योगिकी और इंटरनेट ने ज्ञान को बढ़ावा देने और संरक्षण में क्रांति ला दी है। हालाँकि, इस तकनीकी क्रांति के साथ, पारंपरिक ज्ञान और दर्शन को संरक्षित रखना एक बड़ी चुनौती बन गई है। वैश्वीकरण, आधुनिकता और पाश्चात्य प्रभाव ने कई बार इस ज्ञान को हाशिये पर डाला है।

यह शोध पत्र पारंपरिक भारतीय ज्ञान और दर्शन की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि, डिजिटल युग में इसके संरक्षण के लिए गणितीय और समाधान और भारतीय आधुनिक दर्शन और इसके वैश्विक योगदान जैसे विभिन्न और एकता से जुड़े क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करता है।

पारंपरिक भारतीय ज्ञान एवं दर्शन :-

भारत प्राचीन काल से ही ज्ञान और दर्शन की भूमि है। भारतीय पारंपरिक ज्ञान में वेद, उपनिषद, पुराण, स्मृति और अन्य ग्रंथों का विशेष स्थान है। इन ग्रंथों ने न केवल समाज को दिशा दी, बल्कि आधुनिक युग में भी यह ज्ञान मानव के लिए मार्गदर्शक बन गया है।

भारतीय ज्ञान परंपरा को दो मुख्य भागों में विभाजित किया जा सकता है: श्रुति और स्मृति। जो सुना गया ज्ञान कहा जाता है उसमें श्रुति है, जिसमें वेद, उपनिषद और आरण्यक जैसे प्राचीन ग्रंथ शामिल हैं। यह ज्ञान का सर्वोच्च स्रोत माना जाता है। वहीं, स्मृतियों में महाभारत, रामायण, मनुस्मृति और अन्य ग्रंथ आते हैं, जो सामाजिक और नैतिक जीवन के सिद्धांतों का मार्गदर्शन करते हैं।

यह परंपरा केवल आध्यात्म तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें विज्ञान, गणित, खगोल विज्ञान, आयुर्वेद, ज्योतिष और वास्तु शास्त्र जैसे क्षेत्रों का भी समृद्ध योगदान दिया गया है। आर्यभट्ट और भास्कराचार्य ने गणित और विज्ञान में अपना अनूठा योगदान दिया। चरक और सुश्रुत ने आयुर्वेद के क्षेत्र में ऐसी खलिहान रेखा बताई, जो आज भी बिकती है। यह व्यापकता भारतीय ज्ञान परंपरा को न केवल प्राचीन बल्कि कालातीत बनाती है।

भारतीय दर्शन की बात की जाये तो इसे आस्तिक और नास्तिक दो स्थानों में शामिल किया जा सकता है। आस्तिक दर्शन वे हैं जो वेदों को मानते हैं और नास्तिक, जो वेदों की सत्ता को स्वीकार नहीं करते हैं। आस्तिक दर्शन के अंतर्गत छह मुख्य धाराएँ आती हैं। सांख्य, योग, न्याय, वैशेषिक, पूर्व मीमांसा एवं उत्तर मीमांसा यानि वेदांत। सांख्य दर्शन प्रकृति और पुरुष के द्वैत पर आधारित है। योग दर्शन, नासिका द्वारा रचित, आत्मा और शरीर के सामंजस्य को महत्वपूर्ण मानता है। न्याय दर्शन तर्क और प्रमाण पर आधारित है, जबकि वैशेषिक दर्शन शास्त्र और उसके गुण का विश्लेषण करता है। पूर्व मीमांसा वेदों के कर्म कांड और संस्कारों का महत्वपूर्ण वर्णन है, और वेदांत दर्शन आत्मा और ब्रह्म के ग्रंथों का अध्ययन करता है, जिसमें अद्वैतवाद, द्वैतवाद और विशिष्टाद्वैत जैसे उपसमूह शामिल हैं।

दूसरी ओर, नास्तिक दर्शन में चार्वाक, जैन और बौद्ध दर्शन आते हैं। चार्वाक दर्शन भौतिकवाद पर आधारित है जो केवल इन्द्रियों की सत्यता की पुष्टि करता है। बौद्ध दर्शन दुख के सिद्धांतों और उनके उपचार पर ध्यान केंद्रित करता है, जबकि जैन दर्शन सत्य, अहिंसा और आत्मा के शुद्धिकरण को प्राथमिकता देता है।

भारतीय ज्ञान परंपरा के प्रमुख उद्यमों में इसकी समग्रता, आध्यात्मिकता और भौतिकता का संतुलन, और मानव कल्याण शामिल है। यह जीवन के हर पहलू को कवर करता है और भौतिक और आध्यात्मिक जीवन के बीच सामंजस्य स्थापित करता है। इसका उद्देश्य न केवल व्यक्तिगत आत्मा का कल्याण है, बल्कि संपूर्ण समाज और संसार का भी उद्दीपन है।

डिजिटल युग : परिभाषा और भारतीय ज्ञान प्रभाव :-

21वीं सदी को डिजिटल युग के रूप में जाना जाता है, जहां पुरातन ने मानव जीवन के हर क्षेत्र में अपनी गहरी छाप छोड़ी है। डिजिटल युग की शुरुआत के साथ, मोटोरोला का सहायक उपकरण तेज और आसान हो गया है। यह युग न केवल वैश्विक ज्ञान तक पहुंच सुनिश्चित करता है, बल्कि पारंपरिक ज्ञान और सांस्कृतिक खनिजों को भी संरक्षित करने का एक प्रभावशाली माध्यम प्रदान करता है।

डिजिटल युग का अर्थ एक ऐसा समय है जिसमें डिजिटल तकनीक, जैसे इंटरनेट, क्लाउड स्टोरेज, आर्टिफिशियल साइंस (एआई), और बिग डेटा, मानव जीवन का सिद्धांत भाग बन गए हैं। इस युग में ज्ञान को संरक्षित किया जा रहा है और इसे जन-जन तक के लिए ऑफ़लाइन लाइब्रेरी, डिजिटल लाइब्रेरी और मल्टीमीडिया माध्यमों का उपयोग किया जा रहा है।

डिजिटल युग ने जानकारी को बॉर्डर से फ्री कर दिया है। अब भारतीय ट्रेडिशनल ज्ञान, जो कभी पुस्तकालयों और गुरुकुलों तक सीमित था, ऑफ़लाइन टेलीकॉम के माध्यम से विश्व स्तर पर उपलब्ध है।

हालाँकि, इस प्रगति के साथ कुछ जुड़े हुए भी हैं। डिजिटल माध्यम से सामग्री प्रस्तुत करना समय गलत व्याख्या या नमूना से पारंपरिक ज्ञान का मूल स्वरूप विकृति होने का खतरा बना रहता है। सांस्कृतिक अपव्यय की यह समस्या गंभीर है, क्योंकि यह भारतीय संस्कृति के मूल सिद्धांतों को प्रभावित कर सकती है। इसके अतिरिक्त, संबल संपदा अधिकार से जुड़े मसाल का सामना करना भी एक चुनौती है। कई बार अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर भारतीय पारंपरिक ज्ञान का कॉपीराइट और पासपोर्ट जैसे दस्तावेज़ से डाउनलोड किया जाता है।

ग्रामीण और ग्रामीण इलाकों में डिजिटल तकनीक तक पहुंच की कमी भी एक बड़ी समस्या है। ऐसी जगह पर यह ज्ञान अभी भी सीमित है, जिससे इसका प्रचार-प्रसार व्यापक रूप से नहीं हो पाता। इसके बावजूद, डिजिटल तकनीक भारतीय पारंपरिक ज्ञान को संरक्षित करने के लिए एक प्रभावशाली उपकरण उभर कर सामने आ रही है। राष्ट्रीय पुस्तकालय मिशन में प्राचीन पुरावशेषों की डिजिटलीकरण में महत्वपूर्ण भूमिका रही है। वेदों और उपनिषदों को प्राचीन ग्रंथों की तरह डिजिटल रूप में संरक्षित किया गया है, जिससे उनका अध्ययन और अनुसंधान आसान हो गया है।

इसके अलावा, भारतीय दर्शन, योग और आयुर्वेद पर आधारित विभिन्न फर्मों और ऑनलाइन शिक्षण प्रशिक्षकों ने नई पीढ़ी को इस ज्ञान से जोड़ने का काम किया है। कई एप्स और वेबसाइटों के माध्यम से आयुर्वेद, ज्योतिष और अन्य पारंपरिक विद्याओं की जानकारी आम लोगों तक पहुंचाई जा रही है।

डिजिटल युग में भारतीय दर्शन की उत्पत्ति :-

डिजिटल युग ने भारतीय पारंपरिक ज्ञान और दर्शन को संरक्षित और प्रचारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। यह तकनीकी क्रांति प्राचीन सिद्धांत को आधुनिक माध्यमों से जोड़ने में सहायक सिद्ध हुई है। डिजिटल तकनीक ने भारतीय ज्ञान को आम जनता और वैश्विक समुदाय तक पहुंचाने का मार्ग प्रशस्त किया है। उदाहरणस्वरूप, राष्ट्रीय डिजिटल लाइब्रेरी (एनडीएल) और डिजिटल इंडिया अभियान जैसे प्रयास के माध्यम से प्राचीन पांडुलिपियों और ग्रंथों को ऑनलाइन उपलब्ध कराया गया है। इससे न केवल मसालों को प्राचीन ग्रंथों तक आसानी से पहुंचा जा सकता है, बल्कि आम लोग भी इस मसाले का लाभ उठा पा रहे हैं। भारतीय दर्शन पर आधारित ऑफ़लाइन पाठ्यक्रम (एमओओसी) और डिजिटल पुरालेख ने शोध और अध्ययन के लिए नए अवसर पैदा किए हैं। साथ ही, डिजिटल युग ने भारतीय पारंपरिक ज्ञान जैसे योग, आयुर्वेद और दर्शन को विश्व मंच पर एक नई पहचान दी है। आज वैश्विक स्तर पर भारतीय ज्ञान परंपरा को कोई एकल मानक नहीं दिया जा रहा है, बल्कि इसकी कमी को भी समझा जा रहा है।

आज के समय में भारतीय ज्ञान परंपरा की झलक देखने को मिलती है। योग 21वीं सदी में एक वैश्विक आंदोलन बन गया है, जो शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को संतुलित करने का माध्यम बनता है। आयुर्वेद, जो प्राकृतिक चिकित्सा प्रणाली का प्रतीक है, आधुनिक स्वास्थ्य प्रणाली में तेजी से शामिल हो रही है। ज्योतिष और वास्तु शास्त्र जैसी परंपराएं भी लोगों के जीवन में निर्णय लेने और जीवन शैली को समझने में सहायक हो रही हैं। यह परंपरा केवल अतीत का गौरव नहीं है, बल्कि वर्तमान और भविष्य का मार्गदर्शक भी है।

पारंपरिक ज्ञान का संरक्षण, संरक्षक और उपाय:-

नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 (NEP 2020) में भारतीय दर्शन के महत्व को पुनः स्थापित किया गया है। यह नीति न केवल शिक्षा को बहु-अनावश्यक और समावेशी बनाने के बल पर है, बल्कि भारतीय संप्रदाय, संप्रदाय और संप्रदायों को आधुनिक शिक्षा प्रणाली में पुनर्जीवित करने का मार्ग दिखता है। इस संदर्भ में बिहार सरकार का कदम उल्लेखनीय है, जिसने कक्षा 11 और 12 में तर्कशास्त्र के स्थान पर दर्शनशास्त्र विषय को शामिल किया है। यह निर्णय केवल विषय का एक व्यापक प्रारूप है, बल्कि छात्रों के लिए इस गहन और सारगर्भित विषय को प्रारंभिक स्तरों से परिचित कराने का अवसर प्रदान करता है।

दर्शनशास्त्र को उच्च माध्यमिक स्तर पर लाना इस विषय के प्रति छात्रों में रुचि और जागरूकता पैदा करने का महत्वपूर्ण माध्यम बन सकता है। इससे न केवल भारतीय दर्शन की समृद्ध परंपरा को समझने का अवसर मिलेगा, बल्कि यह भी सुनिश्चित होगा कि मित्र आलोचनात्मक और तर्कपूर्ण सोच विकसित कर सकें। दर्शनशास्त्र के अध्ययन छात्रों को केवल आध्यात्मिक ज्ञान तक सीमित नहीं है, बल्कि उन्हें जीवन के पैमाने और दर्शनशास्त्र पर विचार करने की क्षमता भी प्रदान की जाती है।

बिहार सरकार का यह कदम यह भी है कि राज्य स्तर पर भी औद्योगिक उद्यमों में दर्शन शास्त्र जैसे विषयों को प्राथमिकता दी जा रही है। इसके दूरगामी परिणामों से यह हो सकता है कि भारतीय दर्शन की दीक्षा से आरंभिक छात्रों को इस क्षेत्र में आगे बढ़ने की ओर प्रेरित किया जाए। इस प्रारंभिक शिक्षा प्रणाली में मानव विज्ञान और सामाजिक विज्ञान के समन्वय को भी बल मिलेगा, जो नई शिक्षा नीति के ढांचे के अनुरूप है।

यह अनुचित नहीं है कि इस प्रकार के प्रयास से केवल शिक्षा में गुणात्मक सुधार नहीं होगा, बल्कि भारतीय ज्ञान परंपरा का भी पुनरुद्धार होगा। दर्शनशास्त्र को इस प्रकार से मुख्यधारा में लाना शिक्षा को लघु रोजगारमुख बनाना की बजाय जीवन मूल्य आधारित बनाना की दिशा में एक बड़ा कदम है।

डिजिटल युग ने भारतीय ज्ञान को संरक्षित करने और इसे नई पीढ़ी तक का एक सुनहरा अवसर प्रदान किया है। हालाँकि, इस लक्ष्य को पूरी तरह से हासिल करने के लिए नीतिगत सुधार, तकनीकी प्रशिक्षण और सांस्कृतिक जागरूकता की आवश्यकता है। यह युग न केवल भारतीय ज्ञान परंपरा को पुनर्जीवित करने में सहायक है, बल्कि वैश्विक स्तर पर एक नई पहचान भी स्थापित करने में सफल रही है।

डिजिटल युग में भारतीय पारंपरिक ज्ञान का संरक्षण एक गंभीर चुनौती है। सदियों से पुरातात्विक, स्थापत्य और अभिलेखों में संरक्षित यह ज्ञान आज आधुनिक तकनीक के साथ सामूहिकता की प्रक्रिया में कई पहलुओं का सामना किया जा रहा है। वैश्वीकरण के प्रभाव से पश्चिमी सभ्यता और संस्कृति का प्रभाव बढ़ा है, जिससे भारतीय युवा पीढ़ी पारंपरिक ज्ञान और दर्शन से विमुख होती जा रही है। विशेष रूप से, भारतीय सागर में लिखित प्राचीन ग्रंथों को पढ़ने और समझने वाले लोगों की संख्या तेजी से घट रही है।

टेक्नोलॉजी भी एक बड़ी बाधा है। ग्रामीण क्षेत्रों और आर्थिक रूप से डिजिटल फॉर्मूलेशन की कमी के कारण औद्योगिक ज्ञान का प्रकाशन सीमित हो गया है। भारत के कई गांवों में अभी भी इंटरनेट और तकनीकी शिक्षा की कमी है, जिससे इस ज्ञान को व्यापक स्तर पर साझा करना मुश्किल हो रहा है। साथ ही, शेयर बाजार ने भी भारतीय पारंपरिक ज्ञान को एक बड़ी चुनौती के रूप में खड़ा कर दिया है। हल्दी, नीम और योग जैसे पारंपरिक भारतीय ज्ञान को अन्य देशों द्वारा निर्मित करना इसका स्पष्ट उदाहरण है।

इसके अतिरिक्त, प्राचीन पुरालेखों और शास्त्रों की भौतिक स्थिति भी गंभीर चिंता का विषय है। अनेक महत्वपूर्ण ग्रन्थ या तो नष्ट हो गये हैं या नष्ट हो गये हैं। इनका डिजिटल रूपांतरण मोशन से हो रहा है, जिससे इन मसालों को संरक्षित करना और कठिन हो रहा है।

इन लॉन्च का समाधान डिजिटल टेक्नोलॉजी के प्रभावशाली उपयोग में निहित है। ग्रंथों और ग्रंथों का डिजिटलीकरण तथा डिजिटल पुस्तकालयों और पुरालेखों का निर्माण प्राथमिक चरण हो सकता है। राष्ट्रीय डिजिटल लाइब्रेरी (एनडीएल) और भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद (आईसीसीआर) जैसे प्रयास इस दिशा में सहायक हो सकते हैं। साथ ही, प्राचीन ग्रंथों को स्थानीय समुद्रों में व्याख्या करना भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। योगसूत्र, भगवद्गीता, और आयुर्वेद ग्रंथों के बहुभाषी डिजिटल संस्करण इस दिशा में महत्वपूर्ण कदम हैं।

सार्वजनिक जागरूकता अभियान के माध्यम से लोगों को पारंपरिक ज्ञान की महत्ता प्रदान करना आवश्यक है। योग दिवस और आयुर्वेद दिवस जैसे कार्यक्रमों ने इस दिशा में सकारात्मक प्रभाव डाला है। इसके साथ ही, सरकारी और निजी भागीदारी को बढ़ावा देने के लिए संरक्षित स्टेशनों के लिए धन सुनिश्चित किया जा सकता है। डिजिटल इंडिया और संस्कृति मंत्रालय के गुरु इस दिशा में उल्लेखित हैं।

अंतर्राष्ट्रीय सहयोग भी इस प्रयास को और अधिक प्रभावशाली बना सकता है। छात्रों के साथ साझेदारी कर भारतीय पारंपरिक ज्ञान को वैश्विक खनिज के रूप में मान्यता देना आवश्यक है। इन सामूहिक प्रयासों से केवल इन पूर्वावलोकन का समाधान संभव है, बल्कि भारतीय पारंपरिक ज्ञान को संरक्षित कर इसे भविष्य की सुरक्षा तक प्राप्त किया जा सकता है। डिजिटल युग में पारंपरिक ज्ञान का संरक्षण केवल तकनीकी प्रक्रिया नहीं है, यह सांस्कृतिक और सामाजिक वापसी का माध्यम भी है। सही समूह और समूह के साथ, हमारी अनमोल खड़िया को आने वाले समय के लिए संरक्षित किया जा सकता है।

डिजिटल युग में भारतीय दर्शन का महत्व :-

डिजिटल युग आधुनिकता और प्रौद्योगिकी को हमारे जीवन के केंद्र में ला दिया गया है, लेकिन पेशा ने यह सवाल भी उठाया है कि क्या यह युग दर्शन भारतीय प्राचीन ज्ञान को बनाए रख सकता है। भारतीय दर्शन का मुख्य उद्देश्य जीवन के गहनता को उजागर करना और मनुष्य को शांति, सत्य और आत्मज्ञान की ओर ले जाना है। आज के तेज-तर्रार, तकनीकी युग में, जब लोग मानसिक तनाव, घटना और सतत सूचना प्रवाह से सीख रहे हैं, भारतीय दर्शन का महत्व और भी बढ़ गया है। यह केवल आंतरिक संतुलन प्रदान नहीं करता है, बल्कि तकनीकी युग के पाइपलाइनों से शुरू होने के लिए एक गहन दृष्टि भी प्रदान करता है।

इस डिजिटल युग में भारतीय दर्शन आत्म-ज्ञान, ध्यान और योग जैसे साधन के माध्यम से मानसिक शांति का मार्ग दिखाता है। प्राकृतिक का योग दर्शन, जो आज वैश्विक स्तर पर मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के लिए जोड़ा जा रहा है, इसका एक उत्कृष्ट उदाहरण है। यह दर्शन हमें सिखाता है कि आंतरिक संतुलन और शांति पर ध्यान केंद्रित करना अधिक महत्वपूर्ण है।

इसके साथ ही, भारतीय दर्शन और सही आचरण का मार्गदर्शन भी किया जाता है। भगवद्गीता, जैन दर्शन, और वेदांत जैसे स्रोत हमें यह सिखाते हैं कि किस प्रकार के नैतिक और जिम्मेदार उपयोग किए जा सकते हैं। निष्काम कर्म का सिद्धांत हमें यह प्रेरणा देता है कि हम अपनी निष्क्रियता को निस्वार्थ भाव से निभाएं, चाहे वह डिजिटल डेटा की सुरक्षा हो या कलाकार सिद्धांत के उपयोग में निष्काम कर्म का पालन करना।

डिजिटल युग में भारतीय दर्शन का एक अन्य महत्वपूर्ण घटक यह है कि यह वैश्विक एकता का संदेश देता है। जहां यह युग के लोगों को जोड़ने का काम करता है, वहीं यह सांस्कृतिक संसाधनों और सहायक विभाजन को भी बढ़ावा दे सकता है। ऐसे में "वसुधैव कुटुंबकम" के सिद्धांत जगत को एकजुट करने में अहम भूमिका निभाना है। यह, कि पूरा विश्व एक परिवार है, डिजिटल युग के उद्घाटन के समाधान के लिए आज भी एक ही विचार है कि सभी प्राचीन काल में थे।

भारतीय दर्शन न केवल आध्यात्मिक वास्तुशिल्प के उत्तर देता है, बल्कि आधुनिक शिल्पकार का समाधान भी प्रस्तुत करता है। संकटग्रस्त पर्यावरण से लेकर पुरातत्व से जुड़े अर्थशास्त्र तक, यह दर्शन हमें प्रकृति के साथ और स्वस्थ जीवन जीने का उपाय सिखाता है। वैदिक परंपरा हमें सिखाती है कि प्रकृति का संरक्षण कैसे किया जाए, जबकि योग और आयुर्वेद शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए वैज्ञानिक समाधान प्रदान करते हैं।

डिजिटल तकनीक ने भारतीय दर्शन को संरक्षित एवं प्रचारित करने के लिए एक डेमोक्रेट माध्यम प्रदान किया है। इंटरनेट के माध्यम से वेदांत, योग और गीता जैसे विषयों की लोकप्रियता बढ़ रही है। आर्टिफ़िशियल साइकल आधारित ऐप्स ध्यान और योग सत्रों को अधिक आसानी से बनाया जा रहा है। सोशल मीडिया ने भारतीय दर्शन के विचारों और सिद्धांतों को व्यापक स्तर पर प्रसारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

इस प्रकार, डिजिटल युग ने भारतीय दर्शन को पुनर्जीवित करने और इसे आधुनिक जीवन का आदर्श अंग बनाने का एक अनूठा अवसर प्रदान किया है। यह दर्शन न केवल हमें हमारी परंपरा से जोड़ा गया है, बल्कि वर्तमान और भविष्य की दृष्टि के लिए एक मजबूत नैतिक और आध्यात्मिक आधार भी प्रदान करता है।

निष्कर्ष:-

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