संदेश

मशीनें

हम सभी अपने जीवन को निरंतर अधिक सुखी, सरल और सुविधाजनक बनाने की दौड़ में जुटे रहते हैं। इस यात्रा में, हम अनेक आधुनिक मशीनों और तकनीकों का सहारा लेते हैं, जो दिन-ब-दिन उन्नत होती जा रही हैं। एक दिन ऐसा भी आ सकता है जब मशीनें हमारे लिए सब कुछ करने में सक्षम होंगी— वे सोचेंगी, निर्णय लेंगी, यहाँ तक कि हमारी जरूरतों को बिना कहे समझ भी लेंगी। लेकिन… वे कभी भी महसूस नहीं कर पाएंगी— खुशी – वो आत्मिक संतोष, जो किसी प्रियजन की हंसी से मिलता है। दुःख – वो टीस, जो किसी अपने के दूर जाने से उठती है। गुस्सा – वो ज्वाला, जो अन्याय के खिलाफ भीतर से फूटती है। पीड़ा – वो अहसास, जो सिर्फ तन में नहीं, मन में भी गहराई से महसूस होता है। लगाव – वो नाजुक डोर, जो बिना किसी तार के भी दो दिलों को जोड़ती है। मशीनें शायद हमारे जीवन को आसान बना देंगी, लेकिन इंसान होने का असली अर्थ—ये भावनाएँ, ये एहसास—हमेशा हमारे ही हिस्से रहेंगे! और यही भावनाएँ हमें इंसान बनाती हैं। तकनीक कितनी भी उन्नत हो जाए, मशीनें कितनी भी बुद्धिमान क्यों न बन जाएँ, लेकिन वे कभी अपने अंदर संवेदनाएँ नहीं जगा पाएंगी। वे हमें देख सकती हैं, लेकिन...

डिजिटल युग में पारंपरिक भारतीय ज्ञान एवं दर्शन का संरक्षण, महत्व एवं योगदान

  सारांश:- भारत की विकास यात्रा में न केवल इसकी सामाजिक एवं आर्थिक प्रगति शामिल है बल्कि इसमें नैतिक मूल्य एवं सिद्धांतों का भी महत्वपूर्ण योगदान है। मानव जीवन के लिए महत्वपूर्ण इन सिद्धांतों की जड़े दर्शन में गहराई शामिल है। भारतीय दर्शन के स्वरूप एवं विकास में विशेष योगदान दिया जा रहा है। वेद, उपनिषद, बौद्ध, जैन और अन्य मानव जीवन को दिशा देने वाले विभिन्न सिद्धांत बताए जा रहे हैं। यह पत्र पारंपरिक भारतीय दर्शन के महात्म्य, प्रभाव योगदान एवं को प्रकाशित करता है, तथा यह भारतीय दर्शन एवं दर्शन के संरक्षण के अनुसंधान के लिए डिजिटल माध्यमों की भूमिका को भी पर्यटन बनाने का प्रयास करता है। साथ ही, यह प्रशासन पारंपरिक भारतीय ज्ञान एवं दर्शन के संरक्षण एवं कमियों को दूर करने वाली डिजिटल को भी प्रकाशित करने का प्रयास करता है। डिजिटल युग में केवल भारतीय दर्शन और ज्ञान संरक्षण की तलाश की जा रही है, बल्कि यह वैश्विक समाज भी स्थापित और सतत विकास की ओर प्रेरित कर रहा है। की-वर्ड:- डिजिटल युग, पारंपरिक भारतीय ज्ञान, भारतीय दर्शन, भारतीय दर्शन का महत्व। परिचय :-  भारतीय पारंपरिक ज्ञान और दर्...

ग्लोबल साउथ में भारत की प्रबल भागीदारी : एक विश्लेषणात्मक अध्ययन

 सारांश :- 21वीं सदी की वैश्विक राजनीतिक और आर्थिक प्रगति में ग्लोबल साउथ का महत्व लगातार बढ़ता जा रहा है। ग्लोबल साउथ की इस विकास यात्रा में भारत का भी महत्वपूर्ण योगदान रहा है। यह शोध पत्र न केवल ग्लोबल साउथ के समकालीन महत्व को प्रकाशित करता है बल्कि एक राष्ट्र के रूप में भारत की उभरती हुई भूमिका एवं प्रभावशीलता को भी व्याख्यायित करता है। यह शोध पत्र उन महत्वपूर्ण तथ्यों एवं कारकों पर भी ध्यान केंद्रित करता है जिनके प्रभाव के कारण वैश्विक मंच पर भारत की नेतृत्वकारी भूमिका प्रदर्शित होती है। यह अध्ययन भारत की नेतृत्व क्षमता और ग्लोबल साउथ के हितों की दिशा में भारत के प्रभावकारी योगदान को गहराई से समझने का प्रयास करता है। परिचय :- ग्लोबल साउथ वह अवधारणा है, जिसमे विश्व की दो अलग- अलग विचारधाराओ को आर्थिक- राजनीतिक रूप से विभाजित किया जाता है। जिसमें मुख्य रूप से उन देशों को शामिल किया गया है, जो आर्थिक रूप से विकासशील या उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं के रूप में माने जाते हैं। वैश्विक दृष्टिकोण से संपूर्ण विश्व को दो हिस्सों में बांटा गया है, ग्लोबल नॉर्थ व ग्लोबल साउथ। अमेरिका, जापान,...

मीडिया नीतिशास्त्र और मानवाधिकार: अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और सामाजिक उत्तरदायित्व

 सारांश :- मीडिया किसी भी लोकतांत्रिक समाज की रीढ़ मानी जाती है, क्योंकि यह जनमत निर्माण, सूचना के प्रसार, और सशक्त समाज के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। मीडिया के कार्यों में निष्पक्षता, गोपनीयता, जवाबदेही और सामाजिक उत्तरदायित्व जैसी महत्वपूर्ण जिम्मेदारियाँ होती हैं। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता एक मौलिक मानवाधिकार है, जिसका संरक्षण किसी भी लोकतांत्रिक समाज के लिए आवश्यक है। इसके तहत हर व्यक्ति को अपने विचारों और राय को स्वतंत्र रूप से व्यक्त करने का अधिकार मिलता है, जिससे सामाजिक और राजनीतिक दृष्टिकोण को बढ़ावा मिलता है। इस शोध पत्र का उद्देश्य मीडिया नैतिकता और मानवाधिकारों के अंतर्संबंध का विश्लेषण करना है, खासकर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और सामाजिक उत्तरदायित्व के संदर्भ में। मीडिया, जो लोकतंत्र का चौथा स्तंभ माना जाता है, समाज में विचारों और सूचनाओं के आदान-प्रदान के एक महत्वपूर्ण साधन के रूप में कार्य करता है। इस प्रकार, मीडिया की जिम्मेदारी यह सुनिश्चित करना है कि इसके कार्य समाज के नैतिक और सांस्कृतिक मूल्यों को बनाए रखें और किसी भी प्रकार के दुरुपयोग से बचें। की–...

भारतीय दार्शनिक चिन्तन परम्परा

• हर पदार्थ अपने सूक्ष्म रूप में विचार करता है और हर विचार अपने सूक्ष्म रूप में पदार्थ में होता है। - स्वामी विवेकानंद 

chapterization of the thesis

अध्याय - 1:- परिचय अध्याय - 2:- साहित्य की समीक्षा अध्याय - 3:- अनुसंधान पद्धति अध्याय - 4:- डेटा विश्लेषण और व्याख्या अध्याय - 5:- निष्कर्ष और निष्कर्ष

शंकराचार्य का त्रिविध विश्व : एक व्यापक विश्लेषण

सारांश :- आदिगुरु शंकराचार्य भारतीय दर्शन के एक प्रमुख दार्शनिक और अद्वैत वेदांत के संस्थापक माने जाते हैं। उनका दर्शन, विशेष रूप से त्रिविध विश्व का सिद्धांत, भारतीय दर्शनशास्त्र में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। त्रिविध विश्व की अवधारणा जाग्रत, स्वप्न, और सुषुप्ति नामक तीन अवस्थाओं के माध्यम से विश्व के अनुभवों को व्याख्यायित करती है। शंकराचार्य ने इन अवस्थाओं का वर्णन करते हुए यह स्पष्ट किया कि ये सभी अवस्थाएँ माया के प्रभाव से उत्पन्न होती हैं और अद्वैत सिद्धांत के अनुरूप ब्रह्म का ज्ञान ही इनसे परे है। इस शोध पत्र का उद्देश्य त्रिविध विश्व के सिद्धांत का गहन अध्ययन करना है, जिससे न केवल शंकराचार्य के दर्शन को बेहतर ढंग से समझा जा सके, बल्कि इस सिद्धांत का आधुनिक दर्शनशास्त्र पर प्रभाव भी स्पष्ट किया जा सके। परिचय:- भारतीय दर्शन में आदिगुरु शंकराचार्य का नाम एक प्रमुख स्थान रखता है। उनका दार्शनिक योगदान विशेष रूप से अद्वैत वेदांत के क्षेत्र में अत्यंत महत्वपूर्ण है। शंकराचार्य ने अद्वैत वेदांत के सिद्धांतों को स्थापित किया, जो ब्रह्म के अद्वितीय, और निराकार स्वरूप को मान्य...