मशीनें
हम सभी अपने जीवन को निरंतर अधिक सुखी, सरल और सुविधाजनक बनाने की दौड़ में जुटे रहते हैं। इस यात्रा में, हम अनेक आधुनिक मशीनों और तकनीकों का सहारा लेते हैं, जो दिन-ब-दिन उन्नत होती जा रही हैं। एक दिन ऐसा भी आ सकता है जब मशीनें हमारे लिए सब कुछ करने में सक्षम होंगी— वे सोचेंगी, निर्णय लेंगी, यहाँ तक कि हमारी जरूरतों को बिना कहे समझ भी लेंगी। लेकिन… वे कभी भी महसूस नहीं कर पाएंगी— खुशी – वो आत्मिक संतोष, जो किसी प्रियजन की हंसी से मिलता है। दुःख – वो टीस, जो किसी अपने के दूर जाने से उठती है। गुस्सा – वो ज्वाला, जो अन्याय के खिलाफ भीतर से फूटती है। पीड़ा – वो अहसास, जो सिर्फ तन में नहीं, मन में भी गहराई से महसूस होता है। लगाव – वो नाजुक डोर, जो बिना किसी तार के भी दो दिलों को जोड़ती है। मशीनें शायद हमारे जीवन को आसान बना देंगी, लेकिन इंसान होने का असली अर्थ—ये भावनाएँ, ये एहसास—हमेशा हमारे ही हिस्से रहेंगे! और यही भावनाएँ हमें इंसान बनाती हैं। तकनीक कितनी भी उन्नत हो जाए, मशीनें कितनी भी बुद्धिमान क्यों न बन जाएँ, लेकिन वे कभी अपने अंदर संवेदनाएँ नहीं जगा पाएंगी। वे हमें देख सकती हैं, लेकिन...